Holi 2022- Preparations begin for Rangotsav before Holi in Vrindavan know when Laddu and Lattmar Holi will be played
जानें कब खेली जाएगी बरसाना में लड्डू और लट्ठमार होली
होली 2022 की संक्षिप्त जानकारी
1.
दिनांक: गुरुवार, 17 मार्च 2022
2.
होलिका
दहन मुहूर्त - प्रातः 21:06 से प्रातः 22:16 तक
3.
पूर्णिमा तिथी शुरू होती है - 13:25 -17 मार्च से 12:45 -18 मार्च 2022
4.
पूर्णिमा
तिथि समाप्त - 12:45 पूर्वाह्न
18 मार्च, 2022 को
Holi Festival 2022: उत्तर प्रदेश में राधारानी की नगरी बरसाना में होली से पहले होने वाले रंगोत्सव की तैयारियां अभी से शुरू हो गई हैं, पिछले साल ब्रज तीर्थ विकास परिषद, उत्तर प्रदेश संस्कृति विभाग एवं पर्यटन विभाग ने इसे आयोजित किया था, होली कार्यक्रम लड्डू होली के साथ 12 मार्च से शुरू होगा, 13 मार्च को अष्टमी के दिन बरसाना में लड्डू होली, 13 को लट्ठमार होली का आयोजन किया जाएगा, वहीं 14 मार्च को दशमी के दिन नन्दगांव में लट्ठमार होली, 14 को गांव रावल में लट्ठमार एवं रंग होली, 15 को मथुरा कृष्ण जन्मभूमि एवं वृंदावन में बांके बिहारी मंदिर पर सांस्कृतिक कार्यक्रम एवं होली, 16 को गोकुल में छड़ीमार होली, 17 को गांव फालैन में जलती हुई होली से पंडा का निकलना होगा, होली के सम्पूर्ण कार्यक्रम के बारे में आगे देखें।
मथुरा होली तिथि 2022 और फूलों की होली वृंदावन
मथुरा, वृंदावन और बरसाना होली विश्व प्रसिद्ध है जहां भगवान कृष्ण
और राधा सखा- सखी और गोपियों के साथ खेलते हैं, 2022 की मथुरा एवं वृन्दावन की होली खेलने का कार्यक्रम निम्न प्रकार है -
जानिए होली की जरूरी तिथियां
फुलैरा दूज की तिथि |
04 मार्च दिन शुक्रवार |
नंदगांव में फाग आमंत्रण महोत्सव की तिथि |
10 मार्च दिन गुरुवार |
बरसाना में लड्डू होली खेलने की तिथि |
10 मार्च दिन गुरुवार |
होलाष्टक प्रारंभ तिथि |
10 मार्च दिन गुरुवार |
बरसाना में लट्ठमार होली की तिथि |
11 मार्च दिन शुक्रवार |
नंदगांव में लट्ठमार होली की तिथि |
12 मार्च दिन शनिवार |
रंगभरी एकादशी की तिथि |
14 मार्च दिन सोमवार |
होलिका दहन की तिथि |
17 मार्च दिन गुरुवार |
होली उत्सव कब मनाया जाएगा |
18 मार्च दिन शुक्रवार |

बताते हैं कि इस परंपरा की शुरुआत द्वापर युग में श्रीकृष्ण की
लीला की वजह से हुई है, मान्यता है कि कृष्ण जी अपने सखाओं के साथ कमर में फेंटा लगाए राधारानी
तथा उनकी सखियों से होली खेलने पहुंच जाते थे और उनके साथ ठिठोली करते थे जिस पर
राधारानी और उनकी सखियां ग्वाल वालों पर डंडे बरसाया करती थीं, ऐसे में लाठी-डंडों की मार से बचने के लिए ग्वाल वृंद भी लाठी या ढालों
का प्रयोग करते थे, यहीं परंपरा आज तक चली आ रही है।
अन्य कार्यक्रमों में, 17 मार्च Holika Dahan 2022 को द्वारिकाधीश मंदिर से होली का डोला नगर भ्रमण को जाएगा, 18 मार्च Duleti को द्वारिकाधीश मंदिर में टेसुफूल/अबीर गुलाल की होली होगी, 18 को ही संपूर्ण मथुरा जनपद क्षेत्र में अबीर/गुलाल/रंग की होली खेली जाएगी, 19 को दाऊजी का हुरंगा, इसी दिन गांव मुखराई में चरकुला नृत्य, सांस्कृतिक कार्यक्रम, गांव जाब में हुरंगा आयोजित किया जाएगा। इसके साथ ही होली 2022 का समापन हो जाएगा।

मित्रो होली वसंत
ऋतु में मनाया जाने वाला रंगों का एक त्योहार है। यह एक प्राचीन हिंदू धार्मिक
उत्सव है और कभी-कभी इस त्योहार को प्यार का त्योहार भी कहा जाता है।
होली का त्योहार मुख्यतः भारत,
नेपाल और दुनिया के अन्य क्षेत्रों में मुख्य रूप से भारतीय मूल के
लोगों के बीच मनाया जाता है। यह त्यौहार यूरोप और उत्तरी अमेरिका के कुछ हिस्सों
में भी मनाया जाता है। यह प्रेम, उल्लास और रंगों का एक वसंत
उत्सव है। मथुरा, वृन्दावन, बरसाने और
नंदगाँव की लठमार होली तो प्रसिद्ध है ही देश विदेश के अन्य स्थलों पर भी होली की
परंपरा है। उत्साह का यह त्योहार फाल्गुन मास (फरवरी व मार्च) के अंतिम पूर्णिमा
के अवसर पर उल्लास के साथ मनाया जाता है।
मित्रो त्योहार का एक धार्मिक उद्देश्य भी है, जो प्रतीकात्मक रूप से होलिका की किंवदंती के द्वारा
बताया गया है। होली से एक रात पहले होलिका जलाई जाती है जिसे होलिका दहन (होलिका
के जलने) के रूप में जाना जाता है। लोग आग के पास इकट्ठा होते है नृत्य और लोक गीत
गाते हैं। अगले दिन, होली का त्योहार मनाया जाता जिसे
संस्कृत में धुलेंडी के रूप में जाना जाता है। रंगों का उत्सव आनंदोत्सव शुरू करता
है, जहां हर कोई खेलता है, सूखा पाउडर
रंग और रंगीन पानी के साथ एक दूसरे का पीछा करते है और रंग लगाते है। कुछ लोग पानी
के पिचकारी और रंगीन पानी से भरा गुब्बारे लेते हैं और दूसरों पर फेंक देते हैं और
उन्हें रंग देते हैं। बच्चे और एक दूसरे पर युवाओं स्प्रे रंग, बड़े एक-दूसरे के चेहरे पर सूखी रंग का पाउडर गुलाल लगाते है। आगंतुकों को
पहले रंगों से रंगा जाता है, फिर होली के व्यंजनों, डेसर्ट और पेय जल परोसा जाता है।
होली का त्यौहार सर्दियों के अंत के साथ वसंत के आने का भी प्रतीक
है। कई लोगों के लिए यह ऐसा समय होता है जिसमें लोग आपसी दुश्मनी और संचित
भावनात्मक दोष समाप्त करके अपने संबंधों को सुधारने के लिए लाता है।
आपको बता दें होलिका दहन की तरह,
कामा दहानाम भारत के कुछ हिस्सों में मनाया जाता है। इन भागों में
रंगों का त्योहार रंगपंचमी कहलाता है, और पंचमी (पूर्णिमा)
के बाद पांचवें दिन होता है।
क्यो मनाया जाता है होली त्योहार?
साथियो होली के पर्व से अनेक कहानियाँ जुड़ी हुई हैं। इनमें से सबसे प्रसिद्ध कहानी है प्रह्लाद की। माना जाता है कि प्राचीन काल में हिरण्यक्श्यप नाम का एक अत्यंत बलशाली असुर था। अपने बल के अभिमान में वह स्वयं को ही ईश्वर मानने लगा था। हिरण्यक्श्यप का पुत्र प्रह्लाद विष्णु भक्त था। प्रह्लाद की विष्णु भक्ति से क्रोधित होकर हिरण्यक्श्यप ने उसे अनेक कठोर दंड दिए, परंतु उसने विष्णु की भक्ति नही छोड़ी। हिरण्यक्श्यप की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती। हिरण्यक्श्यप ने आदेश दिया कि होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठे। आग में बैठने पर होलिका तो जल गई, पर प्रह्लाद बच गया। ईश्वर भक्त प्रह्लाद की याद में इस दिन होली जलाई जाती है। जिसे होलिका दहन कहा जाता है।मित्रो प्रह्लाद की कथा के अतिरिक्त यह पर्व राक्षसी ढुंढी, राधा कृष्ण के रास और कामदेव के पुनर्जन्म से भी
जुड़ा हुआ है। कुछ लोगों का मानना है कि होली में रंग लगाकर, नाच-गाकर
लोग शिव के गणों का वेश धारण करते हैं तथा शिव की बारात का दृश्य बनाते हैं।